पुनर्विवाह प्यार की एक शुरुआत
रूको वहीं .. पहले आरती तो करने दो फिर आना अंदर रविश की बड़ी मां ने कहा .. ऐसे कैसे अंदर आ जायेंगे बड़ी मां मैं तो भैया भाभी को बिना नेग के अंदर आने नहीं दूंगी .. रविश की छोटी बहन रानो ने कहा ! अरे तुम अपना नेग बाद में लेना पहले हमें आरती तो करने दो , रविश की बड़ी मां ने कहा और आरती करने लगी । घर के बड़ों ने आरती करने के बाद स्वाति को अंदर ले जाने लगे तभी रानो फिर से नेग मांगने लगी और साथ में स्वाति की मौसेरी बहन पीहू को भी अपने साथ में मिला लिया । रविश ने मुस्कराते हुए अपने वालेट से पैसे निकालते हुए कहा - अभी मेरे पास इतने ही है , कल पक्का तुझे तेरा गिफ्ट मिल जायेगा । मुंह बनाते हुए रानो ने पैसे लिए इस शर्त पर की उसे कल तक उसका गिफ्ट मिल जाना चाहिए । सुबह होने वाली थी और शादी के कार्यक्रम में सब थक भी गये थे , इसलिए सब एक - एक करके अपने - अपने कमरे में आराम करने के लिए चलें गये । स्वाति और शिवांश रानो के कमरे में आराम करने लगे .. सब घरवालों को कुछ घंटों के आराम की सख्त जरूरत थी । कुछ घंटों के आराम के बाद घर के युवा जहां तरोताजा महसूस कर रहे थे और सत्यनारायण कथा की तैयारी कर रहे थे वहीं घर के बड़ों को अभी भी थकान हो रही थी । घर की महिलाओं ने मिलकर प्रसाद और बाकी सब के खाने का इंतजाम करने लगी । पूजा की सारी व्यवस्था हो ने के बाद तय समय पर पंडित जी ने आकर पूजा शुरू की ... पूजा समाप्त होने पर पंडित जी ने विदा ली । पूजा होने के बाद रविश की बड़ी मां ने एक बड़े से परात में दूध डालकर रख दिया और रविश और स्वाति को आमने-सामने बिठा दिया । अपनी मम्मा और रविश को यूं आमने-सामने बैठा देखकर नन्हें शिवांश ने अपनी मम्मा से पूछा - मम्मा आप और पापा ऐसे क्यूं बैठे हो ? स्वाति को शिवांश की बातें जैसे सुनाई ही नहीं दे रही थी , वो तो अपनी पहली शादी की कड़वी यादें याद आ रही थी , कि कैसे राजेश ने इन सब रस्मों को करने से मना कर दिया था और उसका अपमान कर के वहां से चले गये थे । लेकिन रविश वैसे बिल्कुल भी नहीं है द्वार छेकनी की रस्म हो या अंगूठी ढूंढने की सब में कितने उत्साह और प्यार से रस्मों को कर रहे हैं । क्या ये मुझसे सच में प्यार करते हैं !! !...स्वाति का ध्यान तब टूटा जब शिवांश ने उसे हिलाते हुए कहा ...मम्मा आप बार - बार क्या सोचती रहती हो ! शिवांश की बातें सुनकर रविश की मौसी ने व्यंग कसा - उसे शायद अपनी पहली शादी याद आ गई होगी ! इसलिए कुछ नहीं कह रही बेचारी... उनकी बात सुनकर रविश और बाकि के घर वालें नाराज हो गए लेकिन अपनी मां की बहन और मौसी होने के नाते किसी ने उन्हें कुछ नहीं कहा । लेकिन शिवांश की मां चुप ना रह सकी और उन्होंने अपनी बहन से कहा - मालती मेरी बहू इतनी नासमझ नहीं है कि जो बीत गया उसे सोचती रहे , वो आज की पढ़ीलिखी लड़की है । अपने अतीत को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना जानती है और कभी वो कमजोर पड़ी तो हम सब है ना उसके साथ उन्होंने स्वाति के सर पर हाथ रखते हुए कहा । अपनी सास की बात सुनकर स्वाति उनके गले लग कर रोने लगी । रविश की मां ने कहा अब चुप हो जा , तुझे रूलाने का अधिकार सिर्फ मेरा है और मैं अपना अधिकार किसी को नहीं दूंगी...समझी । स्वाति ने जब उन्हें देखा तो सब घर वाले हंस रहे थे और स्वाति भी मुस्कुराने लगी । बस बेटा आप ऐसे ही मुस्कुराते हुए अच्छी लगती हो रविश के पापा ने कहा ।उधर स्वाति की सास ने देखा , स्वाति का पल्लू खींच कर शिवांश अभी भी पूछ रहा था कि आप लोग ऐसे क्यूं बैठे हो !! स्वाति को चुप देखकर सरोज जी ने कहा - बेटा आप हमारे पास आओ हम बताते हैं आपको कि यहां क्या हो रहा है । सरोज जी ने शिवांश को अपने गोद में लेते हुए बताया , बेटा अभी यहां पर एक गेम खेला जाएगा जिसमें सिर्फ आपके मम्मा और पापा दो जने ही खेल सकते हैं । शिवांश ने उत्सुक होकर पूछा ! कैसे खैलते है इस गेम को ? सरोज जी ने रविश और स्वाति को बैठने का इशारा करते हुए कहा - इस बड़े से परात में दुध डाल कर रखा है अब इसमें मैं सात कौड़ी और ये , उन्होंने अपने पास में रखी एक सोने अंगूठी निकाल कर दिखाई । ये सोने अंगूठी इस परात में डाल दी जायेगी । इस खेल में तीन मौके आप दोनों को मिलेंगे , जो एक से ज्यादा बार अंगूठी को ढूंढ निकालेगा वो... इस गेम का विनर होगा , शिवांश ने कहा ! हां... सरोज जी ने कहा । पर दादी जीतने वाले को क्या मिलेगा और हारने वाले को क्या पनिशमेंट मिलेगी । सरोज जी - हारने वाले को जीतने वाले की हर बात माननी पड़ेगी ... अंगूठी ढूंढने की रस्म शुरु हुई एक तरफ रविश और दूसरी तरफ स्वाति , सरोज जी ने जैसे रस्म शुरु करवाई रविश ने मुस्कराते हुए स्वाति को देखा और जल्दी से अपने दोनों हाथ परात में डालकर अंगूठी ढूंढने लगे । स्वाति ने रविश को देखा और हड़बड़ाहट में वो भी अंगूठी ढूंढने लगी । पहली बार अंगूठी स्वाति को मिली , अंगूठी ढूंढने की खुशी स्वाति के चेहरे पर दिख रही थी । रविश , स्वाति के चेहरे पर खुशी लाने के लिए कितनी बार भी हार सकता है । दूसरी बार जब स्वाति और रविश अंगूठी ढूंढ रहे थे तो दोनों के हाथ एक दूसरे से छू लिए स्वाति को एक सिहरन सी हुई और उसने अपना हाथ हटा लिया । दूसरी बार अंगूठी रविश को मिली , तीसरी बार जब दोनों अंगूठी ढूंढ रहे थे तो दोनों जानबूझकर अंगूठी को नहीं पकड़ रहे थे । रविश इसलिए अंगूठी नहीं पकड़ रहे थे , कि उसे अपनी पत्नी को किसी के भी सामने हारने नहीं देना चाहते थे । स्वाति के मन भी ना जाने क्यूं लेकिन उसे रविश उसकी वजह से हारे ये उसे मंजूर नहीं । बहुत देर तक दोनों अंगूठी ढूंढने का नाटक करते रहे । आप लोग कब तक अंगूठी ढूंढेंगे , मुझे बहुत जोर से भुख लगी है .." रविश की बहन ने कहा " मुझे भी बहुत भुख लग रही है मम्मा ... शिवांश , स्वाति के पास आकर कहने लगा । रविश और स्वाति ने एक दूसरे को देख कर इशारा किया और अंगूठी को निकाला , दोनों ने साथ में अंगूठी निकाली , इसका मतलब बड़ों ने ये निकाला की दोनों अपनी गृहस्थी आपसी साझेदारी और समझदारी से निर्वाह करेंगे । सरोज जी ने रविश को अंगूठी स्वाति को पहनाने के लिए कहा ........
Reyaan
10-Apr-2022 01:52 PM
Very nice
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